Atal Bihari Vajpayee Poems: अटल बिहारी बाजपेई 10 प्रसिद्ध कविताएं
Atal Bihari Vajpayee Poems: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न से सम्मानित अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। अटल बिहारी वाजपेयी न केवल एक उत्कृष्ट राजनेता थे, बल्कि वे एक प्रतिभाशाली पत्रकार और संवेदनशील कवि भी थे। उनकी कविताओं ने न केवल उनके विचारों को अभिव्यक्त किया, बल्कि समाज को गहन प्रेरणा भी प्रदान की। आज, हम अटल बिहारी वाजपेयी की दस प्रसिद्ध कविताओं पर विचार करेंगे, जो हमें प्रेरित करने के साथ-साथ हमारे जीवन को दिशा देने में सहायक हो सकती हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी जैसा नेता बहुत ही विरले होते हैं, जिनकी लोकप्रियता केवल उनके समर्थकों में ही नहीं, बल्कि विपक्षी दलों के नेताओं के बीच भी होती है। यही कारण है कि अटल बिहारी वाजपेयी सभी के प्रिय नेता थे। उनकी नेतृत्व क्षमता अद्वितीय थी, और उनका साहसिक निर्णय, जैसे कि अब्दुल कलाम के साथ मिलकर अमेरिका की चेतावनी के बावजूद परमाणु परीक्षण करना, उनकी निडरता का प्रतीक है। Atal Bihari Vajpayee Poems
उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, और उनके विचारों और कविताओं से प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन की दिशा निर्धारित कर सकते हैं। Atal Bihari Vajpayee की कविताएँ हमें न केवल प्रेरित करती हैं, बल्कि जीवन में आगे बढ़ने का साहस भी देती हैं।
Atal Bihari Vajpayee Poems in Hindi
कदम मिलाकर चलना होगा: Atal Bihari Vajpayee Poems
बाधाएं आती हैं आए,
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं,
निज हाथो में हंसते हंसते,
आग लगाकर चलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य रुदन में तूफ़ानों में,
अगर अशंखायक बलिदानों में,
उधानो में, विरानों में,
अपमानो में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक उभरा सिना,
पीड़ाओं में पलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घ्रना में, पुत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत शत आकर्षक,
अरमानों को डलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतर कैसा एती अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लेथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर डलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
कुछ कांटो से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
निरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन मन
जीवन को शत शत आहुति में,
जलना होगा गलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा।
मौत से ठन गई है: Atal Bihari Vajpayee Poems
ठन गई, मौत से ठन गई,
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोककर वह खड़ी हो गई,
यूं लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या हैं? दो पल भी नहीं,
ज़िंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मै जी भर जिया, मै मन से मरू,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरू?
तू दबे पांव चोरी छुपे से न आना,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा।
मौत के बेखबर ज़िंदगी का सफर,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं को कोई ग़म नहीं,
दर्द अपने पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनो से बाकी है कोई गिला।
हर चुनौती से हाथ दो मैंने किए,
आंधियों में जलाएं है बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज तूफ़ान हैं,
नाव भंवरो की बांहों में मेहमान हैं।
पार पाने का कायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ा, तेवरी तन गई।, मौत से ठन गई
पुनः चमकेगा दिनकर: Atal Bihari Vajpayee Poems
आजादी का दिन मना
नई गुलामी के बीच,
सूखी धरती सूखा अम्बर
मन आंगन में किच, मन आंगन में किच।
कलम सारे मुरझाए,
एक एक कर बुझे दीप
अंधियारे छाएं, कहे कबीराय
न अपना छोटा जी कर,
चिर निशा का वक्ष,
पुनः चमकेगा दिनकर।
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं है: Atal Bihari Vajpayee Poems
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष हैं.
हिमालय मस्तक हैं, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघाएं है, कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता हैं।
यह चंदन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि हैं, यह तर्पण की भूमि हैं, यह अर्पण की भूमि हैं।
इसका कंकर कंकर शंकर हैं, इसका बिंदु बिंदु गंगाजल हैं, हम जिएंगे तो इसके लिए ओर मरेंगे तो इसके लिए।
आज सिंधु से ज्वार उठा हैं: Atal Bihari Vajpayee Poems
आज सिंधु से ज्वार उठा हैं, नगपती फिर ललकार उठा हैं, कुरुक्षेत्र के कण-कण से फिर, पांचजन्य हुंकार उठा हैं।
शत शत आघातों को सहकर, जीवित हिंदुस्तान हमारा, जग के मस्तक पर रोली सा, शोभित हिंदुस्तान हमारा।
दुनियां का इतिहास पूछता, रोम कहां, यूनान कहा है? घर घर में शुभ अग्नि जलाता, वह उन्नत ईरान कहां?
दीप बुझे पश्चिमी गगन के व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा किंतु चीर कर तम की छाती चमका हिंदुस्तान हमारा
हमने उर का स्नेह लुटाकर, पीड़ित ईरानी पाले, निज जीवन की ज्योति जला, मानवता के दीपक बाले है।
जग को अमृत का घाट देकर, हमने विषपान किया था, मानवता के लिए हमने हर्ष से, अस्थि वर्ज का दान दिया था।
जब पश्चिम ने वनफल खाकर, छाल पहनकर लाज बचाई, तब भारत से साम गान का, स्वाग्रिक स्वर था दिया सुनाई।
अज्ञानी मानव को हमने, दिव्य ज्ञान का दान दिया था, अम्बर के ललाट को चूमा, अतल सिन्धु को छान लिया था।
साक्षी के इतिहास, प्रकृति का, तब से अनुपम अभिनय होता, पूरब से उगता है सूरज, पश्चिम के तम में लय होता है।
विश्व गगन पर अगणित गौरव के दीपक अब भी जलते हैं, कोटि कोटि नयनों में स्वर्णिम युग के शत सपने पलते हैं।
किन्तु आज पुत्रों के शोनित से रंजीत वसुधा कि छाती, टुकड़े टुकड़े हुई विभाजित बलिदानी पुरखों की थाती।
कण कण पर शॉनित बिखरा है, पग पग पर माथे की रोली, इधर मनी सुख की दीवाली, और उधर जन जन की होली।
मांगो की सिंदूर, चिता की भस्म बना, हा हा खाता है,
अगणित जीवन दीप बुझाता, पापो का झोंका आता है।
तट से अपना सर टकराकर, झेलम की लहरें पुकारती,
यूनानी का रक्त दिखाकर, चन्द्रगुप्त को हैं गुहरती।
रो रोकर पंजाब पूछता, किसने है दोआब बनाया?
किसने मंदिर गुरुद्वारों को अधर्म का अंगार दिखाया?
खड़े देहली पर हों किसने पौरुष को ललकारा?
किसने पापी हाथ बढ़ाकर मां का मुकुट उतारा?
काश्मीर के नंदन वन को किसने सुलगाया,
किसने छाती पर अन्यायो का अंबार लगाया?
आंख खोलकर देखो घर में, भीषण आग लगी है,
धर्म, सभ्यता, संस्कृति खाने दानव क्षुब्ध जगी है।
हिन्दू कहने में शरमाते दूध लजाते लाज नहीं आती,
घोर पतन हैं अपनी मां को मां कहने में फटती छाती।
जिसने रक्त पीकर पाला क्षण भर उसकी और निहारो,
सुनी सुनी मांगे निहारो बिखरे बिखरे केश निहारो।
जब तक दुशासन हैं वेणी कैसे बंध पाएगी,
कोटि कोटि संतति हैं मां की लाज न लूट पाएं।
सत्ता: Atal Bihari Vajpayee Poems
मासूम बच्चो, बूढ़ी औरतोज
वान मर्दों की लाशों पर चड़कर जो सता के सिंहासन पर पहुंचना चाहते हैं,
उनसे मेरा एक सवाल है
क्या मरने वाले के साथ उनका कोई रिश्ता नहीं था, न सही धर्म का नाता, क्या धरती का संबंध नहीं था, प्रथ्वी मा और हम उसके पुत्र हैं, अथर्व वेद का यह मंत्र क्या सिर्फ जपने के लिए है जीने के लिए नहीं?
आग में जले बच्चे, वासना की शिकार औरतें, राख में बदले घर, न सभ्यता के प्रमाण पत्र है, न देशभक्ति का तमगा, वे यदि घोषणा पत्र हैं तो पशुता का, प्रमाश हैं तो पतित्वस्था का,
ऐसे कपुतो से मां का निपुती रहना ही अच्छा है, निर्दोष रक्त से सनी राजगद्दी, श्मशान की धूल से गिरी हैं,
सता की अनियंत्रित भूख रक्त पिपासा से भी बुरी हैं, पांच हजार साल की संस्कृति, गर्व करें या रोए? स्वार्थ की दौड़ में कहीं आजादी फिर से ना खोए।
आओ फिर से दिया जलाएं: Atal Bihari Vajpayee Poems
आओ फिर से दिया जलाएं,
भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा,
अंतरतम का नेह निचोड़े- बुझी हुई बाती सुलगाए
आओ फिर से दिया जलाएं।
हम पड़ाव को समझे मंजिल लक्ष्य हुआ आंखो से ओझल,
वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएं, आओ फिर से दिया जलाएं।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनो के विघ्नों ने घेरा,
अन्तिम जय का वज्र बनाने, नव दधीचि हंड़िया गलाए, आओ फिर से दिया जलाएं।
पहेचान: Atal Bihari Vajpayee Poems
आदमी न ऊंचा होता है, न नीचा होता है,
न बड़ा होता है न छोटा होता है,
आदमी सिर्फ आदमी होता है।
पता नहीं, इस सीधे साधे सपाट को
दुनियां क्यों नहीं जानती है?
और अगर जानती है तो मन से क्यों नहीं मानती हैं।
इससे फर्क नहीं पड़ता हैं कि आदमी कहां खड़ा हैं?
पथ पर या रथ पर तीर पर या प्राचीर पर?
फर्क इससे पड़ता है कि जहां खड़ा हैं,
या जहां उसे खड़ा होना पड़ा है,
वहां उसका धरातल क्या हैं?
हिमालय की चोटी पर पहुंच,
एवरेस्ट विजय कि पताका फहरा,
कोई विजेता यदि ईर्ष्या से दग्ध,
अपने साथी से विश्वासघात करे,
तो उसका क्या अपराध, इसलिए
क्षम्य हो जाएगा कि वह एवरेस्ट की चोटी पर हुआ था?
नहीं, अपराध अपराध ही रहेगा,
हिमालय की सारी धवलता
उस कलिमा को नहीं डक सकतीं हैं।
कपड़ों की दुधिया सफेदी जैसी
मन की मलीनता को नहीं छिपा सकती हैं।
किसी संत कवि ने कहां है कि
मनुष्य के ऊपर कोई नहीं होता,
मुझे लगता है मनुष्य के ऊपर उसका मन होता है।
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता,
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता है।
पहेचान: Atal Bihari Vajpayee Poems
इसलिए तो भगवान श्री कृष्ण को
शास्त्रों से सज्ज, रथ पर चंडे
कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े, अर्जुन को
गीता सुनानी पड़ी थी।
मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते,
न मैदान जितने से मन ही जीते जाते हैं।
चोटी से गिरने से, अधिक चोट लगती हैं,
अस्थि जुड़ जाती, पीड़ा मन में सुलगती है,
इसका अर्थ यह भी नहीं की परिस्थिति पर
विजय पाने की न ठाने।
आदमी जहां खड़ा हैं, वहीं खड़ा रहे,
दूसरों की दया के भरोसे पर पड़ा रहें
जड़ता का नाम जीवन नहीं है,
पलायन पुरोगमन नहीं है।
आदमी को चाहिए कि वह जूझे,
परिस्थितियों से लड़े,
एक स्वप्न टूट जाएं तो दूसरा गड़े।
किन्तु कितना भी ऊंचा उठे,
मनुष्यता के स्तर से न गिरे,
अपने धरताल को न छोड़े,
अन्तर्यामी से मुंह न मोडे,
एक पांव धरती पर रखकर ही
वामन भगवान ने आकाश पाताल लोक को जीता था।
आदमी की पहेचान
उसके धन या आसान से नहीं होती है,
उसके मन से होती है,
मन की फकीरी पर, कुबेर की संपदा रोती है।
झुक नहीं सकते हैं: Atal Bihari Vajpayee Poems
टूट सकते हैं लेकिन झुक नहीं सकते है,
सत्य का संघर्ष सता से, न्याय लड़ता निरंकुशता से
अंधरे ने दी चुनौती हैं, किरण अंतिम अस्त होती है।
दीप निष्ठा का लिये निष्कम्प वज्र टूटे या भूकंप उठे,
यह बराबर का नहीं है युद्ध, हम निहत्थे, शत्रु हैं सन्नध्य,
हर तरह के शस्त्र से है सज, ओर पशुबल हो उठा निर्लज्ज।
किन्तु फिर भी जूझने का प्रण,
अंगद ने बढ़ाया चरण,
प्राण प्रण से करेंगे प्रतिकार
समर्पण की मांग अस्वीकार।
दाव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते है,
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते हैं।
दूध में दरार पड़ गई: Atal Bihari Vajpayee Poems
खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया,
बंट गए शहीद, गीत कट गए
कलेजे में कटार दड़ गई,
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गए नानक के छंद
सतलुज सजम उठी, व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार छड़ गई, दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगें है गैर
खुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएं बिगड़ गई, दूध में दरार पड़ गई।
Conclusion
हमें उम्मीद है कि अटल बिहारी वाजपेयी की दस प्रसिद्ध कविताओं से आपको अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक प्रेरणा मिली होगी। साथ ही, हमें यह बताना न भूलें कि Atal Bihari Vajpayee Poems में से कौन सी कविता ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया। आपके विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं।